हम सभी आसानी से नाराज हो जाते हैं, और हम सभी आसानी से दूसरों को नाराज कर देते हैं..!
इसलिए, अपराध के कारण अपने वादे को रद्द न करें, न ही किसी को यह अधिकार दें कि वे आपसे जो कहते हैं, उससे आपका माहौल बदल दें।
धैर्य रखें। अपराध, कटुता, क्रोध, घृणा और ईर्ष्या से दूर रहें..
परमेश्वर के वचन पर दृढ़ता के साथ खड़े रहे और उस पर पकड़ बना लो क्योंकि यह सत्य है और इसमें पुनरुत्थान की शक्ति है, और यह व्यर्थ नहीं लौटता..!!
स्थिति में अनुग्रह (परमेश्वर का वचन) डालो ताकि आप आसानी से नाराज न हों, और फिर उन चीजों के प्रति संवेदनशील हो जाएं जो दूसरों को चोट पहुंचाती हैं या हतोत्साहित करती हैं।
“मेरा वचन वैसा ही होगा जो मेरे मुंह से निकलता है; वह मेरे पास व्यर्थ न लौटेगा, परन्तु जो कुछ मैं चाहता हूं उसे पूरा करेगा, और जिस काम के लिए मैं ने उसे भेजा है उसमें वह सफल होगा…”(इसायाह 55:11)
June 2
What shall we say, then? Shall we go on sinning so that grace may increase? By no means! We died to sin; how can we live in it any longer?