परिवर्तन केवल स्वतःप्रवर्तित नहीं होता..
हमारे मन में स्वत: प्रवेश करने वाले विचारों पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता है, लेकिन हम निश्चित रूप से उन विचारों पर नियंत्रण रखते हैं जिन्हें हम रहने की अनुमति देते हैं – मन वह है जहां परिवर्तन होता है••••
हमारे विचार हमारी भावनाओं और कार्यों को शक्तिशाली रूप से प्रभावित करते हैं। सिलसिला यूं चलता है..
हमारे पास एक विचार है (जिसे हम एक तथ्य की तरह मानते हैं), जो हमारे अंदर भावनाओं को लाता है और हम कुछ करके उन भावनाओं का जवाब देते हैं••••
यदि मूल विचार प्यारा, रमणीय या सच्चा है, तो यह सुखद भावनाओं और कार्यों को लाएगा। जब विचार चिंतित, अवसादग्रस्त या नकारात्मक आदि होते हैं, – हमें अच्छा नहीं लगता और हमारे कार्यों का अनुसरण होता है•
हमारा सबसे बड़ा पतन हमारे विचारों को अपनी ताकत से नियंत्रित करने का प्रयास करना है••• इसका परिणाम यह होता है हम थक जाते हैं, कमजोर पड़ जाते हैं और हार मान लेते हैं••••
इसलिए, हमें ईश्वर के माध्यम से परिवर्तन की तलाश करनी होगी और हर दिन एक जगह बनानी होगी जहां ईश्वर हमें अपने अनुरूप बदल सकें..!
अपनी कमजोरियों को परमेश्वर के पास लाना, जो बहुतायत से अनुग्रह देता है, कहीं अधिक प्रभावशाली है। हम पूर्ण नहीं हैं, न ही हमारा विचार जीवन परिपूर्ण है– लेकिन मसीह की कृपा पर्याप्त है अपने आप को मारना बंद करो और उसे दे दो••••
परमेश्वर का वचन हमें अपने विचारों को पहचानने में मदद करता है कि वे वास्तव में क्या हैं, और उन पर कैसे कार्य करें (या न करें)।
“मैं अपना सारा धन्यवाद परमेश्वर को देता हूं, क्योंकि उसकी शक्तिशाली शक्ति ने आखिरकार हमारे प्रभु यीशु, अभिषिक्त के माध्यम से एक रास्ता प्रदान किया है! इसलिए यदि मेरे ऊपर छोड़ दिया जाए, तो शरीर पाप की व्यवस्था के साथ संरेखित हो जाता है, लेकिन अब मेरा नया म न स्थिर है और परमेश्वर के धर्मी सिद्धांतों के प्रति समर्पित है.….”(रोमियो 7:25)
May 9
However, as it is written: “No eye has seen, no ear has heard, no mind has conceived what God has prepared for those who love him.” —1 Corinthians 2:9. Children’s