प्रेम आत्म-दान है, आत्म-सेवा नहीं..
ईसाई धर्म का मुख्य पहलू वह काम नहीं है जो हम करते हैं बल्कि
रिश्ते जो हम बनाए रखते हैं और उसके द्वारा निर्मित वातावरण।
कभी-कभी हम अपनी ही बातों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम भूल जाते हैं कि लोग हमारे जीवन की ‘प्राथमिकता’ हैं..!
यीशु को लगातार निराशाओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हमेशा लोगों के लिए समय निकाला।
हमेशा संवाद करें, और उन लोगों के लिए समय निकालें जिन्हें आप प्यार करते हैं।.
याद रखें जब भावनाएँ परस्पर हों, तो प्रयास समान होंगे..!!
“प्यार धैर्यवान और दयालु है; प्यार ईर्ष्या या घमंड नहीं करता है; यह अभिमानी या कठोर नहीं है। यह अपने तरीके से आग्रह नहीं करता है; यह चिड़चिड़ा या क्रोधी नहीं है; प्रेम सब कुछ सह लेता है, सब बातों पर विश्वास कर लेता है, सब बातों की आशा रखता है, सब कुछ सह लेता है।..”(1 कोरिंथियों 13: 4-5, 7)
May 12
“But I tell you who hear me: Love your enemies, do good to those who hate you…” —Luke 6:27. Jesus was the perfect example of this command in his life